tag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post8097782986523793427..comments2023-05-01T03:02:33.111-07:00Comments on स्वामी दयानन्द सरस्वती और 'सत्यार्थ प्रकाश': सत्यार्थ प्रकाशः जिनके करोडों मानने वाले हों उन्हें झूटा और अपने को सच्चा जाहिर करे, उससे बढकर झूटा मज़हब कौन है?Ram Pal Singhhttp://www.blogger.com/profile/14019688831829669347noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post-43428444938379996662011-06-10T03:01:51.854-07:002011-06-10T03:01:51.854-07:00LALA LAJPAT RAI
"Niyoga was not accepted by t...LALA LAJPAT RAI<br />"Niyoga was not accepted by the Aryas"<br />Dayanand's stand was that men or women should marry only once. For a young widow, his prescription- was for 'Niyoga', rather than widow marriage. To him "Niyoga" meant temporary union with the dead husband's brother or other kin to get a child or two but not more than two. But his concept of Niyoga was not accepted by the Aryas; Dayanand in a true democratic spirit did not press his point.<br />In fact, Arya Samaj in the Punjab advertised for and arranged some widow remarriages and Dayanand acquiesced.<br /><br />http://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/25648/1/Unit-26.pdfLala Lajpat Rainoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post-88180383477431322322011-06-06T22:27:21.185-07:002011-06-06T22:27:21.185-07:00It is possible that Dayanand Ji can get triumph fo...It is possible that Dayanand Ji can get triumph for a while in his free supports for Vedic Principal but is is not wrong to say that the wind of wetern civilization will extinguish soon his brning lamp. (Max Muller: A refutation of the Satyartha Parkash of Pundit Dayananda)Max Mullernoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post-21245837353208750112010-12-16T01:23:10.418-08:002010-12-16T01:23:10.418-08:00संजय अग्रहरी आपने हक प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश...संजय अग्रहरी आपने हक प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश नहीं देखी, देखी होती तो पता होता मोलाना ने 159 आपत्तियों के जवाब दिए हैं जबकि चोदहवीं का चांद में केवल वही लेख हेर फेर करके दे दिए गए हैं, जवाब तो तब माना जाता मौलाना की तरह वह भी क्रम से 159 आपत्तियों पर जवाब पर जवाब देते <br /><br />हो सके तो अपने विद्वानों को<br /><br />सत्यार्थ प्रकाश- समीक्षा की समीक्षा <br />satishchandgupta.blogspot.com <br /><br />पर भेजो, नयी किताब नयी बात नया मुसलमान <br /><br />और उपरोक्त पोस्ट तो तुम्हें नजर ही नहीं आ रही होगी कि यह हक प्रकाश का कमाल है या नहीं?shahidhttp://www.scribd.com/doc/42148170/Haq-Parkash-BajawabSatyarthPrakashnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post-69662541583048802542010-12-01T03:46:13.248-08:002010-12-01T03:46:13.248-08:00धनिराम said...
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ म...धनिराम said...<br />गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-<br />‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।<br />(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)<br />November 30, 2010 4:15 AMAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9094223835698419188.post-29747622848517877482010-12-01T03:44:19.635-08:002010-12-01T03:44:19.635-08:00Anonymous said...
सत्यार्थ प्रकाश में से यह इस लि...Anonymous said...<br />सत्यार्थ प्रकाश में से यह इस लिए हटाई गयी है कि मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने हक प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश में बार-बार इसे इस्तेमाल किया है दयानन्दी जी की इस बात को खुद उन्हें कहा है कि आर्य समाजियों की तादाद कितनी है और दूसरी तरफ जैन, बौद्ध, इसाई और इसलाम धर्म को बुरा कहते हो उनके बराबर तो तुम्हारे सबके सर के बाल भी न होंगेAnonymousnoreply@blogger.com