Friday, November 26, 2010

सत्‍यार्थ प्रकाशः पीले रंग के शरीर और भूरी आंख वाली कन्‍या से विवाह न करें


चौथा सम्‍मुल्लास 9,
ऐसी स्त्री से विवाह न करें
न जरद रंग वाली, न अधक आंगी यानि मर्द से लम्‍बीचौडी, न ज्‍यादा ताक्‍तवर, न बीमार, न वह जिस के जिस्‍म पर बिल्‍कुल बाल न हों, न बहुत बाल वाली, बकवास करने वाली और न भूरी आंख वाली

"Let a man never marry one who is pale and anaemic, nor one who is altogether a bigger and stronger person than himself or has a redundant member,* nor one who is an invalid, nor one either with no hair or too much hair or too much hair,** nor one immoderately talkative, nor one with red (brown?) eyes."

8 comments:

Anjum Sheikh said...

क्या सत्यार्थ प्रकाश में इतनी घटिया बातें लिखी हुई है? यह कैसी किताब है?

धनिराम said...

गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)

Anonymous said...

ऐसा दयानन्‍द जी ने कहा है ???????
न जरद रंग वाली, न अधक आंगी यानि मर्द से लम्‍बीचौडी, न ज्‍यादा ताक्‍तवर, न बीमार, न वह जिस के जिस्‍म पर बिल्‍कुल बाल न हों, न बहुत बाल वाली, बकवास करने वाली और न भूरी आंख वाली

Anonymous said...

भूरी आंख वाली कन्‍याओं को क्‍या होगा?
पीले रंग वाली कन्‍याओं का क्‍या होगा?

Anonymous said...

dayanad ji jo kehte hen theek kehte hen hamari buddhi ham samaj nahin paate

ZEAL said...

शर्मनाक आलेख !

rakshak said...

और हाँ सत्यार्थ प्रकाश में ये जो बाते आप लोगो ने उठाई है वो स्वामी जी ने अपनी ओर से नहीं लिखी है , ध्यान से देखें की वो मनुस्मृति के श्लोको का अर्थ है | धन्यवाद |

सच बात said...

बिल्‍कुल सच कहा मैं बार-बार इसे पढता हूं आपका मतलब दूध में सफेदी की तरह साफ दिखायी देता है, फिर पढो और पढवाओ

चौथा सम्‍मुल्लास 9,
ऐसी स्त्री से विवाह न करें
न जरद रंग वाली, न अधक आंगी यानि मर्द से लम्‍बीचौडी, न ज्‍यादा ताक्‍तवर, न बीमार, न वह जिस के जिस्‍म पर बिल्‍कुल बाल न हों, न बहुत बाल वाली, बकवास करने वाली और न भूरी आंख वाली

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