महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिंतक, सुधारक, देशभक्त थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म १८२४ में बंबई की मोरवी रियासत के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[१] इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। गृह त्याग के बाद मथुरा में स्वामी विरजानंद के शिष्य बने। १८६३ में शिक्षा प्राप्त कर गुरु की आज्ञा से धर्म सुधार हेतु 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' फहराई। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ७ अप्रैल १८७५ को बंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी।[२] इन्होंने वेदों की ओर लौटो तथा भारत भारतीयों के लिए नारे दिए। स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश (हिंदी भाषा में) तथा वेदभाष्यों की रचना की। इन्होंने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिंदू बनाने के लिए शुद्धि आंदोलन चलाया। १८८३ में स्वामी जी का देहांत हो गया।
स्वामी दयानंद के अनुयायियों लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में 'दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानंद ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की।
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म भारत के गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित टंकारा ग्राम के निकट मौर्वी (मौर्बी) नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने ने ८७५ में एक महान हिन्दू सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक सन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्हों ने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा संन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया।
स्वामीजी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खंडन करते थे चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो। अपने महा ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश" में स्वामीजी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन किया है। उनके समकालीन सुधारकों से अलग, स्वामीजी का मत शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं था अपितु आर्य समाज ने भारत के साधारण जन मानस को भी अपनी ओर आकर्षित किया।
5 comments:
बहुत ही सार्थक लेख। आज स्वामी दयानंद के विचारों की प्रचार प्रसार की निहायत ही आवश्यक्ता है। आप यह पुण्य का कार्य कर रहे हैं, आभार
अच्छा जानकारीपूर्ण आलेख.
स्वागत! महती आवश्यकता थी।
निरन्तरता और सक्रियता बनाए रखें।
वाह...!
किसी ने तो पहल की।
आज पूरी दुनिया महर्षि दयानन्द सरस्वती के बताए
मार्ग पर चल रही है।
बधाई!
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yadi hindu swami dayanand ke bataye raste par chalen ,aur keval ved ko hi apanaa dharmik granth mane to isai aur musalmanon ka muh tod jawab de sakate hain;musalman aur isai ved par kabhi ungali nahi utha sakate hain .
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