Wednesday, December 1, 2010

सत्‍यार्थ प्रकाशः जिनके करोडों मानने वाले हों उन्‍हें झूटा और अपने को सच्‍चा जाहिर करे, उससे बढकर झूटा मज़हब कौन है?

-----जो मज़हब दूसरे मज़हबों को कि जिनके हजारों करोडों आदमी मानने वाले हो झूटा बतलादे और अपने को सच्‍चा जाहिर करे, उससे बढकर झूटा और मज़हब कौन हो सकता है?  क्‍योंकि किसी मज़हब में सब आदमी बुरे और भले नही हो सकते, एक तरफा डिग्री देना जाहिलों का ही मज़हब है----- पृष्‍ठ 697, सत्‍यार्थ प्रकाश, उर्दू प्रकाशित 1899,

नोटः छपाई की गल्तियों के कारण अब 'सत्‍यार्थ प्रकाश' (हिन्‍दी) 14 समुल्‍लास की 73 समीक्षा में वर्तमान की 'सत्‍यार्थ प्रकाश'  में आपको यह बात नहीं मिलेगी,  स्‍वामी जी से अधिक अपने को ज्ञानी समझने वालों ने इस 73 नम्‍बर की तेरह (13) प‍ंक्तियों  की समीक्षा को 3 लाइन में कर दिया,  उर्दू वाली जो दयानन्‍द जी के निधन के लगभग 25 वर्ष पश्‍चात छपी थी, शिकागो युनिवर्सिटी की मुहरबंद एवं  आर्य समाज से मान्‍यता प्राप्‍त पुस्‍तक से साभार एवं सचित्र दी जा रही है, Arya Samaj ki Urdu Wali men yeh Satya Wachan Abhi Salamat he.
جزئیات برائے ستیارتھ پرکاش (1899
thanks
alqlm.org
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यह करोडों 1908 की इंग्लिश वाली में देख सकते हैं


हक प्रकाश में यह करोंडों वाला दयानन्‍द जी का जुमला मौलाना अमृतसरी ने बहुत इस्‍तेमाल किया गया था जैसे कि इस 14-73 पर  आपत्ति के जवाब में 

इस वाक्‍य का पिछला हिस्‍सा पहले का काफी जवाब है, पाठक तनिक इस वाक्‍य को ध्‍यान से पढें, फिर समाजियों से इस वाक्‍य का ध्‍यान रखते हु पडिंत जी के लिए कोई उचित पद प्रस्‍तावित कराएं, हम भी इसी पर हस्‍ताक्षर कर देंगे,
समाजियों बताओ हज़रत मूसा के चमत्‍कारों को मानने वाले करोडों हैं या कम हैं, यहूद ईसाई और मुसलमान तो खास इन चमत्‍कारों को मानने वाले हैं हिन्‍दू भी अपने बुजुर्गों के लिए इन तीनों कौमों के चमत्‍कारों का मानने में किसी से कम नहीं, क्‍योंकि स्‍वामी जी ने किसी तर्क पर बुनियाद नही रखी बल्कि केवल यही फरमाया कि जिस धर्म के करोडों श्रद्धालू हों, हां यह भली कही कि 'जो ऐसा पक्षपाती है कि एक कौम को डूबो दे और दूसरी को पार उतार दे, वह खुद अधर्मी क्‍यों नहीं? 
पंडित जी परमेश्‍वर की आज्ञा सुनो ...............................................................
हक प्रकाश में page 169 से  172  तक इस नम्‍बर का जवाब दिया गया है


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दुनिया की शुरुआत तिब्बत से हुयी Satyarth Prakash 8/45 कोई दलील नहीं आज यह स्‍त्‍यार्थ प्रकाश है या नहीं ?

यह बात भी अब सत्यार्थ प्रकाश में नहीं मिलेगी, उर्दू वाली में ८ समुल्लास में ५७ वाकिये हें , इंग्लिश में अब ८ चेप्टर में ४२ हें,,
http://www.aryasamajjamnagar.org/chaptereight.htm#37
और हिंदी में अब नुम्ब्रिंग  ख़तम कर दी गयी हें,, जिस से पता चलता हे की आगे भी निकालने का कर्म चलता रहेगा.  

यह भी नहीं कह सकते उर्दू वाली आर्य समाज ने नहीं छापी थी, कहो केसा धर्म हे ?
सत्यार्थ प्रकाश हिंदी में नुम्ब्रिंग ख़तम करने का किया मतलब हे? 
यह करोडों का वाक्‍य वापस लाओ
maulana amritsari ne haq prakash ba jawab Satyarth Prakash men 8/42 ka zikar Kiya he
http://www.scribd.com/doc/42148170/Haq-Parkash-BajawabSatyarthPrakash

5 comments:

Anonymous said...

Anonymous said...
सत्‍यार्थ प्रकाश में से यह इस लिए हटाई गयी है कि मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश में बार-बार इसे इस्‍तेमाल किया है दयानन्‍दी जी की इस बात को खुद उन्‍हें कहा है कि आर्य समाजियों की तादाद कितनी है और दूसरी तरफ जैन, बौद्ध, इसाई और इसलाम धर्म को बुरा कहते हो उनके बराबर तो तुम्‍हारे सबके सर के बाल भी न होंगे

Anonymous said...

धनिराम said...
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)
November 30, 2010 4:15 AM

shahid said...

संजय अग्रहरी आपने हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश नहीं देखी, देखी होती तो पता होता मोलाना ने 159 आपत्तियों के जवाब दिए हैं जबकि चोदहवीं का चांद में केवल वही लेख हेर फेर करके दे दिए गए हैं, जवाब तो तब माना जाता मौलाना की तरह वह भी क्रम से 159 आपत्तियों पर जवाब पर जवाब देते

हो सके तो अपने विद्वानों को

सत्‍यार्थ प्रकाश- समीक्षा की समीक्षा
satishchandgupta.blogspot.com

पर भेजो, नयी किताब नयी बात नया मुसलमान

और उपरोक्‍त पोस्‍ट तो तुम्‍हें नजर ही नहीं आ रही होगी कि यह हक प्रकाश का कमाल है या नहीं?

Max Muller said...

It is possible that Dayanand Ji can get triumph for a while in his free supports for Vedic Principal but is is not wrong to say that the wind of wetern civilization will extinguish soon his brning lamp. (Max Muller: A refutation of the Satyartha Parkash of Pundit Dayananda)

Lala Lajpat Rai said...

LALA LAJPAT RAI
"Niyoga was not accepted by the Aryas"
Dayanand's stand was that men or women should marry only once. For a young widow, his prescription- was for 'Niyoga', rather than widow marriage. To him "Niyoga" meant temporary union with the dead husband's brother or other kin to get a child or two but not more than two. But his concept of Niyoga was not accepted by the Aryas; Dayanand in a true democratic spirit did not press his point.
In fact, Arya Samaj in the Punjab advertised for and arranged some widow remarriages and Dayanand acquiesced.

http://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/25648/1/Unit-26.pdf

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