Tuesday, November 30, 2010

सत्यार्थ प्रकाशः लडके और लडकियों की पाठशाला दो कोश एक-दूसरे से दूर होनी , ,,, स्त्रीयों की पाठशाला में पांच वर्ष का लडका भी, जाने न पावे

लडका लडकी जब आठ वर्ष के हों तभी लडकों को लडकों की और लडककियों को लडकियों शाला में भेज देवें  लडके और लडकियों की पाठशाला दो कोश एक-दूसरे से दूर होनी चाहिए वहां अध्‍यापिका और अध्‍यापक पुरूष वा नोकर-चाकर हों वे कन्‍याओं की पाठशाला में सब स्त्री और पुरूषों की पाठशाला में पुरूष रहें,  स्त्रीयों की पाठशाला में पांच वर्ष का लडका और लडकों की पाठशाला में पांच वर्ष की लडकी भी, जाने न पावे

सत्‍यार्थ प्रकाश, 3 समुल्‍लास का 4था वाक्‍य
http://www.aryasamajjamnagar.org/satyarthprakash/satyarth_prakash.htm


Boys and girls, when they attain to the age of 8 years, should be sent to their prespective schools. In no instance, should they be placed under the tuition of teachers of low character. Only those persons are qualified to teach who are master of their art and are imbued with piety. Dwijaas (twice-born) should have the Upnayan* of their children (boths sons and daughters), done at home, before sending them to their respective schools. The seminary should be situated in a sequestered place. The boy's school should be at least 3 miles distant from that of the girls. The preceptors and employees, such as servants, should, in the boy's school, be all of the male sex, and the girl's school fo the female sex. Not even a child of 5 years of the opposite sex should be allowed to enter the school. As long as they are Brahmacharis (students) they should abstain from the following eight kinds of sexual excitement in relation to persons of the opposite sex:-

10 comments:

Anonymous said...

धनिराम said...
गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।
(अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)

Anonymous said...

धनिराम said...
Ghandhi ji wrote:

Hindu Revivalism and Education in North-Central India

I have profound respect for Dayanand Saraswati. I think that he has rendered great service to Hinduism. His bravery was 'unquestioned. But he made his Hinduism narrow. I have read Satyarth Prakash, the Arya Samaj Bible. Friends sent me three copies of it whilst I was residing in the Yarvada Jail. I have not read a more disappointing book from a reformer so great. He has claimed to stand for truth and nothing else. But he has unconsciously misrepresented Jainism, Islam, Christianity and Hinduism itself. One having even a cursory acquaintance with these faiths could easily discover the errors into which the great reformer was betrayed. He has tried to make narrow one of the most tolerant and liberal of the faiths on the face of the earth. And an iconoclast though he was, he has succeeded in enthroning idolatry in the subtlest form. For he has idolised the letter of the Vedas and tried to prove the existence in the Vedas of everything known to science. The Arya Samaj flourishes, in my humble opinion, not because of the inherent merit of the teachings of Satyarth Prakash, but because of the grand and lofty character of the founder.

http://dsal.uchicago.edu/books/socialscientist/text.html?objectid=HN681.S597_209_006.gif

फरीद पानियाल said...

भाई यह तो इस्‍लामी परदे से भी दो हाथ आगे है 5 वर्ष का बच्‍चा क्‍या बिगाड लेगा

यह शायद ज्ञान में विज्ञान छुपा है जो शायद किसी को दिखायी न देगा

सलीम खान said...

साले रंडी के औलादो कठमुल्लो, गन्दी नाली में रेंगने वाले कीडो, तुम हराम के जने कठमुल्लों नें किसी छिनाल के पेट से जन्म लिया है/ तुम्हारी माँ का कुत्ते सरेराह सामूहिक बलात्कार करें भडवों/

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

ये सलीम खान के नाम के ऊपर क्लिक करके जानना चाहा कि ऐसी गैरजरूरी शब्दावली प्रयोग करने वाले ये भले आदमी कौन हैं तो ये तो किसी मधुर शतक से लिंक्ड है जो कि नीरज शर्मा नाम के सज्जन चला रहे हैं। है न कमाल.... अब आप किसे गाली देना चाहते हैं नीरज शर्मा को या सलीम खान को या किसी को भी नहीं??

Thakur M.Islam Vinay said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Thakur M.Islam Vinay said...

sawami ji ne jo kanun banaya wh sirf bewkufon ke liye

Taarkeshwar Giri said...

Neeraj ji apko aise shabdo ke prayog se bachna chahiye.

Rahi bat Manne ki to kaun manta hai aaj kal in faltu bato ko

Anonymous said...

गिरी राम जी आश्‍चर्य की बात है आप दयानन्‍द जी की शिक्षा को फालतू की बात कह रहे हैं

Tarkeshwar Giri said...
Neeraj ji apko aise shabdo ke prayog se bachna chahiye.

Rahi bat Manne ki to kaun manta hai aaj kal in faltu bato ko
November 30, 2010 11:34 PM

मदन शर्मा said...

सत्यार्थ प्रकाश ध्यान से पढ़ने की पुस्तक है | ऐसी नही की आप कोई भी पेज खोल ले और कोई १-२ पंक्ति ले कर उसकी उपेक्षा करें | रही बात गांधी जी के विचारों की तो उनके विचार अपने अलावा किसी से नहीं मिलते थे | सत्यार्थ प्रकाश में ये जो बाते आप लोगो ने उठाई है वो स्वामी जी ने अपनी ओर से नहीं लिखी है , ध्यान से देखें|
वैदिक समाज व्यवस्था मे भावी संतान को सुसंकृत करने के लिए सोलह संस्कारों का आदेश है. चाहे किसी भी विकृत अवस्था मे हो सम्पूर्ण भारत वर्ष के हिंदुसमाज मे इन संस्कारों का किसी न किसी रूप मे पालन किया जाता रहा है .सबका नही तो कुछ महत्वपूर्ण संस्कारों का प्रचलन तो है ही. यही भावनाएं यम और नियम भी हमे याद करातीहैं , एक हिंदु का सामाजिक व्यवहार विश्व के सब लोगों से पृथक इन्ही भावनाओं के कारण होता है. जिनमे से विकृतियों के कारण कुछ हमारे समाज के लिए एक अभिशाप भी सिद्ध हो रहे हैं.
इस प्रकार मेरा यह सोचना है कि हम समस्याओं के मूल में जाकर ,उन पर चिन्तन करें, तभी हम उनका हल पा सकेंगे अन्यथा हम एक दूसरे से उलझते ही नजर आएँगे |

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